छोडो मेहँदी खडक संभालो खुद ही अपना चीर बचा लो द्यूत बिछाये बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जायेंगे सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे| कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से, कैसी रक्षा मांग रही हो दुशासन दरबारों से| स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं वे क्या लाज बचायेंगे सुनो द्रोपदी […]